आपस में बात करने के लिये यदि हमें अंग्रेजी जैसी किसी मध्यस्थ भाषा की सहायता लेनी पड़े तब भी यह हमारे लिये लज्जा का विषय है।
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लोकार्पण करते हुए डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने भारतीय बहुभाषिक स्थिति में अनुवाद के महत्त्व और स्वरुप की चर्चा करते हुए अनुवाद को विश्वविद्यालयीय स्तर पर भाषाविज्ञान के साथ साथ साहित्य विभागों का भी अनिवार्य हिस्सा बनाने की माँग की और कहा कि भारतीय साहित्य की सभी क्लासिक रचनाओं का अनुवाद परस्पर सभी भारतीय भाषाओँ में उपलब्ध कराने के लिए हिंदी का मध्यस्थ भाषा के रूप में व्यवहार किया जाना चाहि ए.